
मायावती।
06 जून 24, मुरादाबाद। उत्तर प्रदेश में बड़ी शक्ति रह चुकी बसपा इस लोकसभा चुनाव मेंं एक भी सीट हासिल नहीं कर सकी। सियासी रणनीतिकार इसे बसपा की सियासी चूक मान रहे हैं। बसपा का अकेले चुनाव लड़ने की रणनीति भारी चूक साबित हुई है। पिछले लोकसभा चुनाव में सपा के साथ गठबंधन करके बसपा ने दस सीटों पर जीत हासिल की थी। सियासी पंडितों का मानना है कि बसपा अगर इंडिया गठबंधन का साथ चुनाव लड़ती तो प्रदेश में कम से कम सोलह सीटें और गठबंधन के खाते में होती। यह बात नतीजों के सामने आने के बाद मिले बसपा को वोट के आधार पर की जा रही है। अगर गठबंधन यूपी में सोलह सीटें और जीत लेता तो देश की सियासत में बदलाव भी संभव था। वैसे मायावती ने मुस्लिम वोट का बसपा से नहीं जुड़ना हार का कारण माना है।
अमरोहा-बिजनौर भी प्रभावित
आंकड़े बताते हं कि प्रदेश में बसपा के ज्यादातर प्रत्याशी तीसरे नंबर पर रहे हैं तथा सुरक्षित सीट पर गठबंधन व चंद्रशेखर आजाद का जीतना भी रणनीति फेल होने का कारण माना जा रहा है। बसपा वोटर समाज के युवा सपा-कांग्रेस या चंद्रशेखर आजाद उम्मीद देख रहे हैं। नजीतों में सामने आया है कि सोलह सीटों पर भाजपा की जीत का अंतर बसपा प्रत्याशी को मिले वोटों से कम रह, यानी बसपा भी गठबंधन में शामिल होती तो यह सोलह सीटें गठबंधन के हिस्से में आ सकती थी। इसके साथ ही बसपा भी इस चुनाव में कुछ सीटें हासिल कर सकती थी। खबरों में कहा गया है कि प्रदेश की अमरोहा, बिजनौर लोकसभा सीट समेत अकबरपुर, अलीगढ़, बांसगांव, भदोही, देवरिया. डुमरियागंज, फर्रुखाबाद, फतेहपुर सीकरी, हरदोई, मिश्रिख, मिर्जापुर, फूलपुर, शाहजहांपुर व उन्नाव लोकसभा सीट पर भाजपा प्रत्याशी के जीत के आंकड़े से अधिक वोट बसपा प्रत्याशी को मिले हैं। हालांकि कई जगह इंडिया गठबंधन को बसपा के कारण जीत भी हासिल हुई है।