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कशमकश  : आजम, इकराम, शेरवानी और  डा. हसन को नुकसान, 19 को क्या करेगा मुसलमान

confusion : Loss to Azam, Ikram, Sherwani and Dr. Hasan, what will Muslims do on 19th

17 अप्रैल 24, मुरादाबाद। सपा के कद्दावर नेता आजम खां और उनका परिवार जेल में है। पिछले विधानसभा चुनाव में जनता की अवाज बनने वाले हाजी इकराम कुरैशी समेत पचिमी उप्र के कई दिग्गज मुस्लिम नेताओं के टिकट काटकर घर पर बैठा दिया गया। इस लोकसभा चुनाव में भी पश्चिमी उप्र की मुस्लिम बाहुल्य सीट पर गैर मुस्लिम को टिकट दिया गया है। मुरादाबाद लोकसभा से सांसद सदन में खूब बेबाकी से बोले तो उन्हें भी टिकट काट कर घर बैठा दिया गया। मतदान की तिथि नजदीक आने पर मुसलमान मतदाता सोचने पर मजबूर है। जानकार मानते हैं कि इन्हीं बिंदुओं पर सोचविचार कर रहे मुसलमान मतदाओं में उत्साह कम देखा जा रहा है।

सोचने पर मजबूर मुसलमान

राजनीति में बदलाव बहुत तेजी से हो रहा है, मुसलमानों की हाशिये पर पहुंचाने की सियासत इतनी साफ नजर आने लगी है कि आम मतदाता भी इसे देख रहा है। हैरानी की बात यह है कि सत्ता तक पहुंचाने वाले मुसलमानों को सपा ही भूलने लगी है। पार्टी के दिग्गज और वरिष्ठ नेताओं को कौम का नेता बनने से रोकने के लिए टिकट नहीं देने और टिकट काटने जैसे फैसले लिए जा रहे हैं। कहानी की श्ुरुआत आजम खां से हुई और उन पर एक के बाद एक करते हुए 80 से अधिक मुकदमे दर्ज किए गए। उनकी पत्नी और पुत्र को भी जेल भेजा गया है। सपा पर आजम खां के लिए कुछ नहीं करने के आरोप लगते रहे हैं। इसके बाद देहात सीट से विधायक हाजी इकराम, कुंदरकी से विधायक हाजी रिजवान का टिकट काटा गया। यह गनीमत रहा है कि स्थानीय मुस्लिम नेताओं को ही टिकट दिया गया था। इस मर्तबा तो सांसद डा. एसटी हसन का नामांकन कराने के बाद टिकट काट दिया गया और बिजनौर से बुलाकर रुचिवीरा को टिकट दिया गया है। चुनाव से पहले ही बदायं के सलीम शेरवानी ने पार्टी पर उपेक्षा का आरोप लगाकर पार्टी के पदों से इस्तीफा दे दिया था।

प्रचार थमा, चर्चाओं का दौर शुरू

गौरतलब है कि मतदाताओं को सोच-विचार के लिए पहले चरण का प्रचार थम गया है। बुधवार शाम से रात तक शहर की गलियों और चौक में लोग राजनीति पर चर्चा करते देखे गए। मतदाताओं के बीच बीते दिनों बसपा प्रत्याशी इरफान सैफी का बयान भी चर्चाओं में दिखा। याद रहे कि बसपा प्रत्याशी इरफान सैफी ने न्यूज रनवे से कहा था कि सपा मुसलमानों से कयादत छीनना चाहती है। इस मुद्दे पर सपा और भाजपा में कोई फर्क नहीं है, दोनों ही मुसलमानों को संसद में जाने से रोकने का काम कर रहे हैं। बहरहाल, कहीं बसपा नेता का बयान व दलित-मुस्लिम गठजोड़ की तो कहीं मुस्लिम कयादत खत्म करने की चर्चा होती देखी गई। कहीं हर हाल में गठबंधन प्रत्याशी का जिताने का जिक्र भी होता सुना गया। दूसरी तरफ सभी प्रत्याशी मतदान की तैयारी की रणनीति बनाने और कार्यकर्ताओं को जिम्मेदारी बांटने में लगे रहे। इसके विपरीत मुस्लिम बुद्धिजीवी कहते हैं कि मुलसमानों के सामने कठिन चुनौती है, एक तरफ गठबंधन है तो दूसरी तरफ मुस्लिम कयादत बचाने की जिम्मेदारी। देखिये, मतदान वाले दिन मुस्लिम वोटरों का रुझान क्या रहता है

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