23 मई 23, मुरादाबाद। यूपी निकाय चुनाव 2023 में पीतल नगरी में सपा की करारी हार की परतें रोज-दर-रोज खुल रही हैं। इसके साथ ही साफ होता जा रहा है कि जिन दिग्गजों पर पार्टी हाईकमान ने भरोसा किया था, वहीं पार्टी में अपना हित साधने में लगे थे। इसके लिए उन्होंने पार्टी को होने वाले नुकसान को पूरी तरह नजरांदाज कर दिया। हालांकि जो खबरें सामने आयी हैं उससे साफ होता है कि पार्टी हाईकमान ने स्थानीय सांसद के साथ राज्यसभा सदस्य की सिफारिश को भी अनदेखा कर दिया था। बहरहाल, अब सभी लोग समीक्षा की तैयारी में लगे हैं और बचाव के बहाने तलाश कर रहे हैं।
फार्मूला स्वीकृत होते ही बदले नेता
दरअसल, हाईकमान ने प्रदेश का संगठन भंग कर दिया था और चुनाव का ऐलान होने तक मुरादाबाद में जिला व महानगर अध्यक्षों का मनोनयन नहीं हो सका था। पूर्व विधायक हाजी यूसुफ अंसारी, विधायक देहात नासिर कुरैशी समेत सभी दिग्गज संगठन में अपने समर्थक को शामिल कराने की जोड़तोड़ में लगे थे। महापौर सीट सामान्य होने पर पूर्व विधायक और विधायक ने सियासी जाल बुना ौर हाईकमान के सामने मसौदा पेश कर दिया। खबर मिली है कि यह लोग अंसारी समाज से महानगर अध्यक्ष मनोनीत करने और सामान्य जाति से महापौर प्रत्याशी चुनने का प्रस्ताव दिया था। यह लोग मेयर प्रत्याशी का लिए एक नाम की सिफारिश भी कर रहे थे। सांसद डॉ. एसटी हसन ने अंसारी समाज से शिक्षित और साफ-सुधरी पहचान रखने वाले को प्रत्याशी बनाने और कुरैशी समाज से महानगर अध्यक्ष मनोनीत करने की सिफारिश करके आए थे। बकौल-डॉ. एसटी हसन, उन्होंने किसी नाम की सिफारिश नहीं की थी। राज्यसभा सदस्य जावेद अली खां भी अंसारी समाज से प्रत्याशी बनाने के हक में थे।
अब अखिलेश के निर्णय पर निगाह
सियासी हल्कों में चर्चा है कि निर्वतमान महानगर अध्यक्ष शाने अली शानू ने विधायक और पूर्व विधायक का तालमेल सही नहीं रहा था। इसलिए भी दिग्गजों की कोशिश महानगर अध्यक्ष बदलने की रही। जाहिरी तौर पर इकबाल अंसारी पूर्व विधायक यूसुफ अंसारी के खासमखास हैं। जाहिर है कि सियासत का उसूल है अपने समर्थकों को पद दिलाना और सभी नेता ऐसा करते हैं। मगर मुरादाबाद में इससे आगे की राजनीति हुई। महानगर अध्यक्ष के मनोयन से खुश हुए नेताओं ने सपा मुखिया अखिलेश यादव द्वारा चयनित प्रत्याशी को जिताने के लिए कोई कार्य नहीं किया। चुनाव लड़ाने के लिए लगी टीम में अधिकांश लोग यूसुफ अंसारी गुट के रहे। बहरहाल, अब लखनऊ में जल्द ही समीक्षा होनी और इसमें अखिलेश यादव स्वयं हार के कारणों का मंथन करने वाले हैं। चर्चा है कि अधिकांश नेताओं ने नेयर प्रत्याशी पर ही हार की जिम्मेदारी थोपने की तैयारी कर ली है। अवाम की निगाहें लगी हैं अखिलेश के आगामी फैसलों पर। गौरतलब है कि लोकसभा चुनाव भी सिर पर है। सवाल एक और तेजी से शहर में घूम रहा है कि अब अंसारी समाज का नेता कौन होगा। जानकार मानते हैं कि इसका फैसला अब लोकसभा चुनाव में होना है।