बहादुर मां को सलाम : सिलाई करके पाले बच्चे, अब पेट भरने को बुर्का पहन नाजमा दौड़ाती हैं ई-रिक्शा
Salute to the brave mother: Children brought up by sewing, now Najma runs e-rickshaw wearing a burqa to fill her stomach
10 मई 23, मुरादाबाद। यह कहानी फिल्मी बिल्कुल नहीं है, यह सच्चाई है जिंदगी की। यहां दर्द है बेवा होने है, यहां संघर्ष है औलाद को पालने का और यहां पीड़ा है औलाद के नाफरमान निकलने की। एक बेवा की संघर्ष की दास्तां आपको हैरान भी करेगी और परेशान भी, मगर यह नारी को अबला समझने वालों के लिए एक पैगाम है और मां की हिम्मत, हौसला और बहादुरी की मिसाल है। नाजमा समाज के साथ नारी सशक्तिकरण के लिए मॉडल भी हैं।
इकलौता बेटा नहीं रखता है ख्याल
शहर की घनी और मध्यम वर्ग की आबादी करूला में रहने वाली नाजमा अंसारी की उम्र अभी पचास के पार हुई है। भरी जवानी में यानी करीब 13 साल पहले बेवा होने वाली नाजमा ने अपने बच्चों की परवरिश के लिए सबकुछ बेच दिया। सिलाई करके बेटा और बेटी को बड़ा किया और दोनों का विवाह भी कर दिया। अब अकेले हो गईं तो अपना पेट पालने के लिए ई-रिक्शा चलाना शुरू कर दिया। मजहबी परिवार में पली-बढ़ी नाजमा ने हौसला बरकरार रखा और पर्दा भी।
वह बुर्का पहन कर ई-रिक्शा चलाती हैं। ई-रिक्श में लोग बैठते हैं उसमें अधिकांश रिक्शा चलाने की बाबत पूछताछ करते हैं और मना भी करते हैं, मगर नाजमा बेबाक होकर कहतीं हैं कि खुद्दारी भी कोई चीज है। अपनों ने किनारा कर लिया तो पेट भरने के लिए काम करने में कैसी शर्म।
मोहल्ले में लोग उन्हें खाला और बाजी कहते हैं और सभी बेपनाह इज्जत भी करते हैं। वह बताती हैं कि अब सिलाई नहीं होती तो ई-रिक्शा चलाकर जरूरी खर्च करती हंू। नाजमा अंसारी की दास्तां मीडिया में आने पर भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा के वरिष्ठ नेता फुरकान हुसैन उनके घर पहुंचे।
भाजपा नेता ने टीम के साथ धीमरी मार्ग पर अखबार फैक्ट्री के पास रहने वाली नाजमा के दुख को बांटा और जरूरत के मुताबिक सहयोग भी किया और उनका बिल भी जमा कराया है। टीम में अकरम वारसी, रुस्तम अंसारी, बाबू, गुलजार हैदर, आकिब राईनी आदि मौजूद रहे।